Sunday, December 20, 2009

किनारे बैठने से क्या होगा?

छत्तीसगढ़ में नगरीय निकायों के चुनाव हो रहे हैं। यह लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार है। जनता अपनी जरूरतों का ध्यान रखने के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है। उन्हें जनता के लिए काम करना होता है। यह अलग बात है कि चुने जाने के बाद बहुत से लोग जनता के काम पर कम, अपने काम पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। गरीब नेता पद पाकर अमीर होने लगते हैं। कुछ तो सात पीढिय़ों के लायक धन इकट्ठा कर लेते हैं। इसीलिए राजनीति और नेताओं को लेकर लोगों के मन में अच्छी धारणा नहीं है। लेकिन यह सब जनता में लोकतंत्र की समझ और संस्कार के अभाव का नतीजा है। जनता का एक बड़ा वर्ग अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए तैयार नहीं है। या उसके पास इसके लिए वक्त नहीं है। ताकत नहीं है। जनता की यह कमजोरी, यह मजबूरी जितनी जल्दी दूर होगी, लोकतंत्र उतनी ही जल्दी बेहतर नतीजे देगा। लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है। जनता को अपने शासन की जिम्मेदारी समझनी होगी। उसे राजा-प्रजा के जमाने के संस्कारों से खुद को बाहर निकालना होगा और जो लोग खुद को राजा समझते हैं उन्हें यह अहसास दिलाते चलना होगा कि भाई साहब-बहनजी आप लोग हमारे बीच के ही हो। अभी हो यह रहा है कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू है पर शासक और शासित के दो वर्ग बने हुए हैं। एक तरफ नेता-मंत्री, अफसर, बड़े धनपति, बाहुबली किस्म के लोग हैं दूसरी तरफ आम लोग। शासक वर्ग जनता से दूर रहता है और क्रमश: दूर होता चला जाता है। दूर का मतलब यह कि गरीब जनता गरीब रह जाती है और शासक वर्ग के लोगों का धन बढ़ता जाता है। आमतौर पर जो शासक वर्ग है वह नहीं चाहता कि जनता जागरूक और जिम्मेदार बने। वह नहीं चाहता कि उसका काम काज सूचना के अधिकार के जरिए पारदर्शी हो जाए। वह शासक बने रहना चाहता है। दरअसल कमजोर जनता ने इन्हें शासक बना रखा है। ये शासक नहीं हैं। इन्हें प्रबंधक कहा जाना चाहिए। शासन तो जनता का है। जनता को यह बात महसूस करनी होगी। और खुद पर जिम्मेदारी लेनी होगी। इसके लिए जनता को पहले खुद को शिक्षित बनाना होगा। संघर्ष की क्षमता अपने में विकसित करनी होगी। बहुत से लोग यह काम कर रहे हैं। वे शासक वर्ग को यह अहसास दिलाने में लगे हैं कि भाई साहब आप हमसे अलग नहीं हो। ऐसे ही प्रयासों के चलते भ्रष्ट नेता जेल जाते हैं और प्रभावशाली पदों पर काम करने वालों का काम, उनकी संपत्ति सूचना के अधिकार के दायरे में आती है। संघर्ष करने वालों के कारण ही जनता को बहुत से अधिकार मिलते चले जाते हैं। लेकिन यह काम कुछ लोगों के भरोसे छोडऩा ठीक नहीं। हर नागरिक को जिम्मेदार और सक्षम बनना होगा। तभी असमानता और अन्याय दूर होगा। राजनीति के नाम पर नाक भांै सिकोडऩे वालों कों राजनीति में खुद भी आना चाहिए। देखना चाहिए कि बुरे माने जाने वाले लोग क्यों सफल हैं। देखना चाहिए कि वे खुद कैसे सफल हो सकते हैं। ताकत तो ताकत होती है। वह चाहे भले आदमी के पास हो चाहे बुरे आदमी के पास, उसके दम पर काम किए जा सकते हैं। तो जनता को ताकत जुटानी होगी। हमें आंखें खोलकर सफल नेताओं के दुर्गुणों के बीच, उनके गुणों को देखना चाहिए। बहुतेरे नेता हैं जो सुबह जल्दी उठते हैं, कसरत करते हैं, संयमित भोजन करते हैं, अध्ययन करते हैं, दिन भर और शायद देर रात तक काम करते हैं, वे अपने परिवार को समय कम दे पाते हैं, अपने निजी शौक के लिए उनके पास समय नहीं रहता, जीवन जनता के काम के लिए समर्पित हो जाता है। बहुत से नेताओं को राजनीति के उतार चढ़ाव देखने पड़ते हैं, खतरे उठाने पड़ते हैं। नेताओं की बुराई करने से पहले यह देखना चाहिए कि हममें क्या उनके जैसी अच्छी आदतें हैं? हम उनके जितना त्याग कर रहे हैं? खुद को ताकतवर बनाने के लिए क्या उतना समय, उतना श्रम लगा रहे हैं? हममें से ज्यादातर लोग राजनीति के समुद्र के किनारे बैठकर लहरें गिनते हैं। उन्हें समुद्र में उतरना चाहिए। साहसिक यात्राओं पर निकलना चाहिए। गोते लगाकर मोती ढूंढने चाहिए। और दूसरों के लिए मिसाल बनना चाहिए कि भइया मोती इस तरह मिलते हैं। तूफानों का सामना इस तरह किया जाता है। इस तरह जिया जाता है। किसी शायर ने कहा है-

मोहब्बत को समझना है
तो खुद नासेह मोहब्बत कर
किनारे से कभी
अंदाजा ए तूफां नहीं होता

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