Thursday, December 17, 2009

निर्मल वर्मा को पढ़ते हुए

निर्मल वर्मा का उपन्यास एक चिथड़ा सुख बहुत पहले पढ़ा था। एक बिलकुल नई दुनिया को इसके जरिए देखने का मौका लगा। एक कस्बाई मध्यमवर्गीय व्यक्ति के लिए यह दुनिया अपने से बेहतर सोचने समझने वालों और अपने से अधिक स्पष्टï चरित्र वाले लोगों की थी। कलाकारों के जीवन के बारे में पहले बहुत किस्से कहानियां सुन चुका था लेकिन इस उपन्यास के पात्र मिलकर एक अलग ही दुनिया रचते हैं। ऐसे लोगों के दुनिया में होने की कल्पना ही मुझे अपने आप में बहुत अच्छी लगी और अनोखी बात यह लगी कि ये लोग हू ब हू किताब के भीतर भी मौजूद थे। यह ईश्वर और साहित्यकार के रचना संसार का साथ साथ अहसास करते चलना था। मुझे इस उपन्यास के पात्र बिट्टी और उसका कजिन बहुत पसंद आए। अक्सर मुन्नू मुझे अपने जैसा लगता रहा। इस उपन्यास को पढऩा उसकी बगल में दुबके हुए इस अनोखी दुनिया को देखने जैसा था। मैं बिट्टी जैसे कई लोगों को जानता हूं इसलिए उसने चित्रण ने भी मुझे बहुत प्रभावित किया। मेेरे लिए बिट्टïी अपने आप में एक बहुत महान पात्र है और मैं अक्सर सोचता हूं कि इन पात्रों की तकदीर से खेलने वाला लेखक कैसा होगा? इस उपन्यास के जरिए मैंने बिट्टी और मुन्नू के घर को अंदर से देखा। मुझे बहुत अच्छा लगा यह जानकर कि हमारे जैसे दूसरे लोग दिल्ली में भी हैं जो फर्श पर सो लेते हैं। कपड़े खुद धोते हैं। रात बिरात घर आते हैं। देर तक सोते हैं। दूसरे को जगाने के लिए कह देते हैं। जगाने से जागते नहीं और जिन्हें उठाने के लिए उनके कहे का वास्ता देना पड़ता है। जो लोग एक साथ खा नहीं पाते और पर्चियां छोड़ जाते हैं कि खाना बना दिया है, खा लेना। हमारे घर में यही काम बगैर पर्चियों के होता था। बिट्टी और उसके दोस्तों की दुनिया में मैंने पहली बार शराब पीने वालों को इतने करीब से देखा। उनके बीच बैठकर नहीं लगता कि ये लोग कोई अपराध कर रहे हैं। ध्यान इस पर बना रहता है कि ये लोग क्या सोच रहे हैं। ऐसे पात्र हर कहानी के नहीं हो सकते।

No comments: