Wednesday, December 16, 2009
दोबारा मत पूछना
हाल ही में मेरी एक परिचित से बात हो रही थी। उन्होंने मुझसे पूछा- आप कहां तक पढ़े हो? आमतौर यह सवाल मुझसे कोई पूछता नहीं। मेरे परिचितों में इस तरह के सवाल पूछने वाले लोग नहीं हैं और मुझे किसी से ऐसा कोई काम नहीं पड़ता कि कोई मुझसे पूछे कि आप कहां तक पढ़े हो। मैं कभी किसी से पूछता भी हूं तो यह नहीं पूछता कि कहां तक पढ़े हो। मैं कई लोगों से यह पूछ चुका हूं कि कौन सा सब्जेक्ट लेकर पढ़ाई की। यह सवाल मैं ऐसे मौकों पर पूछता हूं जहां किसी से ऐसा कोई काम पड़ जाए। अपने पास बॉटनी की कोई गुत्थी है तो बेहतर है कि यह जानकर ही किसी से पूछा जाए कि उसने बॉटनी की पढ़ाई की है या नहीं। किसी को इतिहास से संबंधित कोई सवाल देने से पहले जान लेना बेहतर होता है कि उसने इतिहास पढ़ा है कि नहीं। लेकिन मेरे परिचित ने यह जानने के लिए पूछा था कि पढ़ाई लिखाई के हिसाब से मेरा कद क्या है। मैंने कहा-अगर आप यह जानना चाहते हैं कि मेेरे पास डिग्री कौन सी है तो मैं मैट्रिक पास हूं। उन्होंने कहा- मैं विश्वास नहीं कर सकता। मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मेरे पास मैट्रिक से बड़ी डिग्री नहीं है। उनकी आंखों में दया उतर आए इससे पहले ही मैंने उनसे कहा- आपको विश्वास क्यों नहीं हो रहा है? क्या आपको लग रहा है कि मैट्रिक पास होने के कारण मैं कम काबिल हूं? और आप पोस्ट ग्रैजुएट होने के कारण मुझसे ज्यादा जानते हैं? उन्होंने घबराकर कहा- मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। वे घबराए इसलिए कि उनके एक पेज के लेख में मैं पचीस पचास गलतियां निकाल चुका था। और जिस वक्त वे मुझसे बात कर रहे थे मैं टूटी फूटी अंग्रेजी में मिशिगन में बैठे अपने एक रिटायर्ड मित्र से बात कर रहा था। इंटरनेट पर एक दूसरे की खींची तस्वीरें देखकर हमारी दो दिन पहले दोस्ती हुई थी और हमें लग रहा था कि हम एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। मिशिगन में बैठे मेरे इस मित्र की पत्नी रिटायर्ड टीचर हैं और मैंने उन्हें बताया था कि मेरी मां भी स्कूल में पढ़ाती थीं और हाल ही में रिटायर हुई हैं। उन्होंने मुझे अपने बेटे के बारे में बताया जो किसी और शहर में नौकरी करता था और उसे कंप्यूटर व फोटोग्राफी के बारे में काफी पता था। मिशिगन वाले दोस्त बहुत प्यारी बातें करते हैं। उनकी चर्चा मैं आगे करूंगा। मुझसे मेरे परिचित ने पूछा- आप खुद को मैट्रिक पास कहते हो और आपकी अंग्रेजी इतनी स्ट्रॉंग है? मैंने कहा- आप अंग्रेजी अच्छी तरह जानते हैं? उन्होंने कहा- नहीं। मैंने पूछा-जब आपकी अंग्रेजी अच्छी नहीं है तो आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि मेरी अंग्रेजी स्ट्रांग है? मैं आपसे ज्यादा जानता होऊंगा, या यह कहना ज्यादा सही होगा कि आप मुझसे कम जानते होंगे लेकिन मेरी अंग्रेजी के बारे में तो वह तय करेगा जिसका अंग्रेजी पर अधिकार हो। मेरे पोस्ट ग्रैजुएट परिचित मेरी बात से सहमत हुए। उन्होंने मेरे तर्क की तारीफ की लेकिन डिग्री से कद तय करने की अपनी सोच से वे फिर भी नहीं उबर पा रहे थे। उनकी ईमानदारी की तारीफ करनी पड़ेगी, उन्होंने स्वीकार किया कि वे अपनी सोच से अभी भी उबर नहीं पा रहे हैं। मैंने कहा-सचिन तेंदुलकर के लिए आपके दिल में ज्यादा इज्जत नहीं होगी क्योंकि मेरा खयाल है कि उन्होंने भी कोई बड़ी डिग्री हासिल नहीं की है। और मदर टेरेसा भी आपके आगे पानी भरती होंगी? मैंने अनुमान से ऐसे बहुत से लोगों के नाम लिए और उनसे पूछा-इनमें से कितने लोग इस बात के लिए जाने जाते हैं कि वे पोस्ट ग्रैजुएट थे या हैं? दुनिया में कोई सफल, काबिल, मशहूर व्यक्ति इसलिए नहीं जाना पहचाना जाता कि वह पोस्ट ग्रैजुएट है। मैंने उन्हें बताया कि पोस्ट ग्रैजुएट होना आजकल बहुत आसान है। मंैने उन्हें यह भी बताया कि जिस विश्वविद्यालय से वे पढ़े हैं वहां से पढ़े लिखे लोगों को यहां से बाहर इज्जत नहीं मिलती। उनकी डिग्री पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं किया जाता। मैंने तो यह भी सुना है कि उन्हें नौकरी पर लेने से पहले उनकी अलग से परीक्षा ली जाती है। और मैं जितने ग्रैजुएट-पोस्ट ग्रैजुएट को जानता उनका स्तर देखकर मुझे लगता है कि इनकी परीक्षा जरूर ली जानी चाहिए। मैंने उनसे कहा- पद को लेकर भी आप किसी के कद का अनुमान नहीं लगा सकते। पद चापलूसी के कारण भी मिलते हैं, रिश्तेदारी के कारण भी, कभी कभी नाकाबिल होने के कारण भी पद मिल जाता है। मैं ऐसे संपादकों को जानता हूं जिनकी भाषा में इतनी गलतियां हैं जितनी मैंने स्कूल में पढ़ते समय भी नहीं कीं। मैंने उन्हें बताया कि इस शहर में बहुत से बच्चे बूट पॉलिश करते घूमते रहते हैं। बहुत से बच्चे प्लास्टिक बीनते हैं। कुछ बालिकाएं ठेला खींचने में अपने मां बाप की मदद करती हैं। कुछ कम उम्र लड़कियां रेजा का कम करती हैं। कुछ विकलांग घूम घूम कर छोटी मोटी चीजें बेच कर घर चलाते हैं। कुछ घिसट घिसट कर चलने वाले भी अपनी रोटी खुद कमाते हैं। इनमें से शायद ही कोई पोस्ट ग्रैजुएट हो। और कितने ही पोस्ट ग्रैजुएट मां बाप की छाती पर मूंग दलते रहते हैं। मैं तो भीख मांगने वालों को भी मेहनती और उद्यमी गिनता हूं। यह आसान काम नहीं है। यह अलग बात है कि कहीं और मर्दानगी नहीं दिखा पाने वाला हमारा कुंठित समाज उन्हें झिड़ककर बड़ा बन जाता है। और खुद गणेेश और दुर्गा के नाम पर हाथ फैलाता है या फैले हुए हाथों पर डर कर इंक्यावन रुपए डाल देता है। मित्रो। अधिक न पढ़ पाने का मुझे बहुत अफसोस है। पढऩे से जानकारियां मिलती हैं। अच्छी किताबें पढऩे से नजरिया मिलता है। सोच का दायरा बड़ा होता है। सही गलत की समझ पैदा होती है। लेकिन मुझे इस बात का कतई अफसोस नहीं है कि मेरे पास ऐसी कोई डिग्री नहीं है जिसका मैं हकदार नहीं हूं।
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