Wednesday, December 16, 2009

वह दस नम्बर जर्सी की हक़दार है

वह एक यादगार शाम थी।
मैं प्रेरणा मिश्रा के बारे में कुछ नहीं जानता था। लेकिन अब मैं उसे जानता हूं। और मुझे खुशी है कि मैं इसी शहर में रहता हूं जिसमें वह रहती है।
वह रायपुर की एक स्कूली लड़की है। वह एक बहुत अच्छी फुटबॉलर है।
रायपुर में और भी लड़कियां फुटबॉल खेलती होंगी। मैं उन्हें नहीं जानता। लेकिन उस रोज मैदान पर जितनी लड़कियां खेल रही थीं, उनमें वह सबसे तेज थी। सिर्फ लड़कियों में नहीं, लड़कों में भी मुझे उस जैसा कोई खिलाड़ी उस रोज नजर नहीं आया।
मौका था खेल विभाग के फुटबाल शिविर के समापन का। सप्रे मैदान में इस अवसर पर लड़के और लड़कियों के बीच मैच रखा गया था।
प्रेरणा को देखकर यह तो लगता था कि वह खेल सकती है लेकिन यह नहीं मालूम था कि वह इतना अच्छा खेलेगी। खेल शुरू हुआ तो वह मामूली लड़कियों की तरह खेलती दिखी। फिर जैसे जैसे खेल परवान चढ़ा, उसके भीतर की प्रतिभा दिखने लगी। उस रोज किसी और खिलाड़ी ने इतनी भागदौड़ नहीं की होगी जितनी उसने की। गेंद ज्यादातर लड़कियों के हाफ में दबी रही इसलिए मैं दावे से नहीं कह सकता कि वह बैक में खेल रही थी या हाफ की पोजीशन से, लेकिन उसने अपने हाफ में पूरा मैदान संभाल रखा था और गेंद लेकर विपक्षी के पाले में भी जा रही थी। बॉल छिनने के बाद विरोधी डिफेंडर से भिडऩा है कि तेजी से अपने हाफ में लौटना है, इसका जबरदस्त सेंस मैंने उसमें देखा। पहले हाफ में तो वह पहली ही बार में गेंद को क्लीयर करने की भूमिका अधिक निभाते दिखी लेकिन दूसरे हाफ में मैंने उसकी ड्रिब्लिंग और डॉजिंग देखी। अपनी टीम को गोल न कर पाते देख वह शायद फॉरवर्ड के रूप में टीम की मदद करना चाहती थी।
फुटबॉल में खिलाडिय़ों के बीच जबरदस्त टक्कर होती है। मुझे देखकर बहुत अच्छा लगा कि लड़कियां विपक्षी से टकराने में बिलकुल नहीं झिझक रही थीं। लड़कों ने भी जानबूझकर गिराने वाला खेल नहीं खेला। वहां बहुत सीरियस फुटबॉल हो रहा था। फुटबाल में कभी कभी गेंद को अपने कब्जे में करने या रखने के लिए विरोधी को कंधे से धकियाना भी पड़ता है। लड़कियों ने यहां भी हौसला दिखाया। उनकी टीम को कुछ अच्छे फॉरवर्ड मिल जाते तो नतीजा कुछ और होता। लड़कियां 3-0 से हारीं। लेकिन इस रिजल्ट से मैच की यह सच्चाई जाहिर नहीं होती कि लड़कों को इसके लिए कितना संघर्ष करना पड़ा। और इसीलिए गोल करने के बाद कैसे वे खुश हुए मानो विश्वकप में गोल मार लिया है।
वह एक यादगार शाम थी। उसमें मैंने लड़के लड़कियों की बराबरी की सुंदर मिसाल देखी। लड़कियों की ताकत का नमूना देखा। खेल मंत्री लता उसेंडी उस दौरान मौजूद थीं। वे खुद महिलाओं की ताकत की मिसाल हैं। हिंदी तो वे अच्छी बोल ही लेती हैं, अपने इलाके की बोली में वे और भी धाराप्रवाह बोलती हैं। डा. रमन सिंह की विकास यात्रा के दौरान कोंडागांव में मंच से उनका ओजस्वी भाषण सुनने को मिला था। राजधानी के लोगों को उन्हें उनके इलाके में सुनना चाहिए। लड़कियों की ताकत की एक और मिसाल फुटबॉल की कोच सरिता कुजूर हैं जिन्होंने प्रेरणा समेत दर्जनों लड़कियों को तैयार किया है।
धमतरी में मैंने कलात्मक खेल खेलने वाले खिलाडिय़ों को बरसों देखा है। रायपुर में वैसे खिलाड़ी मुझे देखने को नहीं मिले, शायद इसलिए कि खेल मैदानों पर मेरा जाना कम होता है। एक बार आरकेसी के बच्चों को ऐसा फुटबॉल खेलते देखा था और एक बार लाखे नगर में भिलाई की एक टीम को जिसमें ज्यादातर किशोर उम्र खिलाड़ी लगते थे। प्रेरणा के खेल में मुझे फिर वही ड्रिब्लिंग, पासिंग और मूव बनाने वाला खेल दिखा। तनाव के क्षणों में भी कूल होकर गेंद निकालने की मेहनत दिखी। स्टाइलिश और दमदार किक दिखी। प्रेरणा को उसके खेल के लिए बधाई, शुभकामनाएं और शुक्रिया। वह वाकई दस नंबर जर्सी की हकदार है।

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