Saturday, February 6, 2010

वहां जोत जगाएं जहां अंधेरा है


(राजिम कुंभ में संत समागम के पहले दिन पाटेश्वर धाम के संत बालकदास महात्यागी द्वारा दिया गया उद्बोधन)


मेहमानों को भगवान मानना छत्तीसगढ़ की परिपाटी है जिसे हम निभाते आए हैं। राजिम कुंभ भी इसी परिपाटी के तहत चल रहा है। यहां आने वाले सभी अतिथि हमारे भगवान होते हैं। चाहे वे संत हों या जनता, सबके सम्मान की व्यवस्था इस मेले में की जाती है। छत्तीसगढ़ भगवान राम की भ्रमणस्थली है। यहां वे जंगल जंगल घूमे हैं। मैं छत्तीसगढ़ से बाहर जाता हूं तो यह कहते हुए मेरी छाती चौड़ी हो जाती है कि छत्तीसगढ़ मेरी जन्मभूमि है, मेरी कर्मभूमि है, मेरी दीक्षाभूमि है। यह वह छत्तीसगढ़ है जिसे आज इस मंच पर उपस्थित संत आकर सम्मानित कर रहे हैं। कहीं पर किसी ने मुझसे कहा कि छत्तीसगढ़ में एक ही कमी है, वहां तीर्थ नहीं है। मैंने कहा कि यह माता कौशल्या की जन्मस्थली है जिन्होंने जगत को प्रकाशित करने वाले, रघुकुल के सूर्य भगवान राम को जन्म दिया। स्वामी प्रज्ञानंद महाराज ने अपने संबोधन में माता कौशल्या के नाम पर एक भवन बनाने का प्रस्ताव दिया है। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि 1 अप्रैल 2009 को विधानसभा के पास स्थित चंदखुरी गांव में माता कौशल्या की जन्मस्थली पर एक बड़ा आयोजन हुआ था। छत्तीसगढ़ शासन और क्षेत्रीय जनता का इसमें सहयोग रहा। आज हमें कौशल्या माता के नाम पर कोई स्मारक बनाने की आवश्यकता नहीं है। चंदखुरी में माता कौशल्या तालाब के बीच में रामलला को गोद में लेकर बैठी हैं। वे हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं कि इस स्थल के गौरव को पुनस्र्थापित करें। भविष्य में माता कौशल्या महोत्सव के नाम से वहां आयोजन होंगे। वहां सभी संतों के पूज्य चरणों में हम निवेदन करेंगे कि आपके आशीर्वचन वहां हमें प्राप्त हों। राजिम को कुंभ कहने के बारे में अब भी प्रश्न किए जाते हैं। अब कोई प्रश्न रह नहीं गया है। जब यह कुंभ शुरू किया गया था, मैं पूरे भारतवर्ष में संतों के चरणों में निवेदन लेकर गया। कई तरह की बातें मुझे सुनने को मिलीं लेकिन साथ ही आशीर्वाद भी मिला। शुभकामनाएं मिलीं कि राजिम कुंभ का आयोजन किया जाए। कुंभ को संतों ने इसे स्थापित किया है। प्रमाणित किया है। इसे विराट स्वरूप भी संतों ने दिया है। आज हरिद्वार में कुंभ होने के पश्चात भी बड़ी संख्या में यहां संपूर्ण भारत के संतगण विराजमान हैं। राजिम कुंभ की जितनी चिंता छत्तीसगढ़ शासन को, छत्तीसगढ़ के संतों को और बृजमोहन अग्रवाल को है उससे ज्यादा चिंता पूज्य आचार्यों को है कि हम नहीं जाएंगे तो राजिम कुंभ सूना हो जाएगा। इसलिए हरिद्वार को भी छोड़कर यहां बैठे हुए हैं। आज विभिन्न रूपों में सारे देश में छत्तीसगढ़ का गौरव जा रहा है। एक गौरव और जाना चाहिए। वह है गोरक्षा का। संपूर्ण छत्तीसगढ़ में गो माता को काटने का एक भी कत्लखाना नहीं है। एक प्रण यहां मुझे, आपको, छत्तीसगढ़ शासन को और प्रतिपक्ष को भी लेना पड़ेगा, सभी राजनीतिक पार्टियों को लेना पड़ेगा, सभी समाज संगठन के लोगों को लेना पड़ेगा। केवल कथा, पूजा, यज्ञ से कल्याण नहीं होगा। गोमाता की रक्षा का प्रश्न है जो ऐसे मंचों से उठना आवश्यक है। और साथ ही संकल्प आवश्यक है। छत्तीसगढ़ में गो वध पर पाबंदी लग चुकी है लेकिन हर बार मैं यह विषय उठाता हूं कि छत्तीसगढ़ से आसपास के सभी प्रदेशों में गौमाता बेची जाती है और वहां ले जाकर काटी जाती है। इसी राजिम कुंभ में चंद्रशेखर साहू ने एक प्रस्ताव किया था, यह शासन को सौंपा गया था और लागू भी होना है कि सीमांत क्षेत्रों में गोमाता को काटने के लिए बेचने वाले बाजारों पर प्रतिबंध लगे। यह स्पष्ट नीति बने कि मात्र कृषि योग्य जानवर बेचे जाएं। सीमांत क्षेत्रों में पशु जांच चौकी बनाकर कटने के लिए ले जायी जा रही गायों को रोका जाए। हम तो संत हैं। भिक्षा मांगकर जीवन यापन करते हैं। अगर हमें भिक्षा देना चाहते हैं तो एक संकल्प लीजिए-अगर हमारी गाय या बैल बूढ़े हो जाएं तो अपने धर्म का सौदा करके उसे बाजार में मत बेच देना। उसको जीवन भर सेवा देना। तब गौमाता की रक्षा होगी। पूज्य संतों के चरणों में दूसरा निवेदन करूंगा। आज समरसता की बात हम करते हैं। जैसा कि तुलसी ने कहा- सियाराम मय सब जग जानी। घासीदास बाबा ने कहा-मनखे मनखे एक। रामानंद जी ने कहा-जाति पाति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई। लेकिन आज भी कहीं कहीं नवधा रामायण जैसे मंचों पर जाति पांति, छुआ-छूत के नाम पर रामभक्तों को चढऩे नहीं दिया जाता। हम केवल प्रवचनों के माध्यम से इसे नहीं सुधार सकते। इसके लिए राजिम कुंभ जैसा वातावरण चाहिए जहां समस्त पंथ-संत विराजमान हैं। सबकी मर्यादा एक साथ विराजमान होती है। उसी तरह हमारे उपासना स्थल में सभी मत-धर्मों के देवी देवता, महापुरुष विद्यमान हों। आज करमा माता, परमेश्वरी माता को आप एक मंदिर में बिठा नहीं पाते हो। एक मंदिर में कबीरदास जी को, बाबा घासीदास जी को, नानक जी, महावीर जी को बिठाने में क्या हमें दिक्कत होती है? अगर हम समरसता की बात करते हैं, अगर हम कहते हैं कि सभी हमारे बंधु हैं तो हमारे उपासना स्थलों में भी ऐसी बात हो। पाटेश्वर धाम में ऐसा हो रहा है। जशपुर और बस्तर के सुदूर क्षेत्रों में हम अशांति से जूझ रहे हैं। मुझसे उड़ीसा में पत्रकारों ने पूछा था कि आज जंगलों में विघटनकारी तत्व क्यों बच गए हैं? मैंने कहा-पहले जंगलों में महात्मा रहा करते थे, संत रहा करते थे। तब जंगलों की पवित्र हवा शहरों को मिला करती थी। जब से संतों ने जंगल छोड़ दिया और शहरों में डेरा जमाना शुरू कर दिया तब से असामाजिक तत्व वहां आकर बसने लगे। पुन: एक बार हमारे संत जंगलों की ओर चलेंगे, वनवासी क्षेत्रों की ओर चलेंगे तो जंगल पवित्र हो जाएंगे और गलत तत्वों को जगह नहीं मिलेगी। ेएक बार राजिम में बात उठी थी कि यहां सभी अखाड़ों को, सभी संतों को भूमि प्रदान की जाए, सबके आश्रम बनाए जाएं तो मैंने कह दिया था कि राजिम में क्यूं? आज सभी आश्रम हरिद्वार या वृंदावन में क्यूं बनते हैं? ऐसे आश्रम बस्तर,सरगुजा, अंबिकापुर, जशपुर, दंतेवाड़ा में बनें। कालाहांडी में बनें जहां बच्चे बिकते हैं। समस्त आदिवासी क्षेत्रों में, अभावग्रस्त क्षेत्रों में बनें जहां शासन की सुविधाएं भी नहीं पहुंच पाती हैं।मैं अपने प्रणेता संतजनों से निवेदन करना चाहूंगा कि छत्तीसगढ़ केवल राजिम में नहीं है। वह बस्तर और सरगुजा में भी है। वह भोले भाले आदिवासियों के चेहरे और दिल में भी है। आप सबके चरण वहां भी पडऩे चाहिए। आपके ज्ञान की धारा वहां भी होनी चाहिए। आपकी वाणी का अमृत वहां भी बरसना चाहिए। आपके गुरुकुल, आपके अस्पताल, आपके आश्रम, आपकी संस्थाएं, इन सबके लिए शासन की ओर से खुला आमंत्रण होना चाहिए कि सभी संत उन क्षेत्रों में जाकर जोत जगाएं जहां अंधेरा है। हमारे आदिवासी, वनवासी बंधुओं के भीतर का भी अध्यात्म जागे जिन्हें बरगलाया जा रहा है। तब छत्तीसगढ़ का जो दृश्य बनेगा वह भारत के लिए आदर्श होगा।

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