राजिम कुंभ को इस भावना के साथ शुरू किया गया है ताकि यहां अधिक से अधिक संत आएं। उनके आशीर्वाद से राज्य की तरक्की हो। यहां सदाचरण आए। हमें संतोष है कि लोगों के सहयोग से राजिम कुंभ की महिमा सारे देश में बढ़ रही है। परंपरा से जो चार कुंभ होते हैं वे बारह साल में एक बार होते हैं। राजिम कुंभ की विशेषता यह है कि यह हर साल होता है। यहां हमारे लोगों की भक्ति का प्रकटीकरण होता है। इलाहाबाद के अलावा यह एक ऐसा स्थान है जहां लोग अस्थियां विसर्जन करते हैं और इसे प्रयागराज कहते हैं। यहां भगवान राजीवलोचन का मंदिर है। कुलेश्वर महादेव का मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि इसकी स्थापना माता सीता के द्वारा की गई है। यहां लोमश ऋषि का आश्रम है। समीप ही वल्लभाचार्य जी की प्राकट्य भूमि है। छत्तीसगढ़ माता कौशल्या की जन्मभूमि है। भगवान राम यहां के भांजे हैं। यहां के लोग अपने भांजों को भगवान राम स्वरूप मानते हैं और उनके पांव छूते हैं। इस पुण्य धरती पर कुंभ प्रारंभ करने के पीछे भावना यह थी कि यहां साधु संत आएंगे। इस नए राज्य छत्तीसगढ़ को देश व दुनिया में एक पहचान मिलेगी। धार्मिक आस्था का प्रकटीकरण होगा। साधु संतों की चरणरज पड़ेगी, हम सबको आशीर्वाद मिलेगा। हम छत्तीसगढ़ को देश का सबसे सुंदर, सबसे सुखी राज्य बना पाएंगे। यहां के दुख दर्द समाप्त होंगे। लोगों में खुशहाली आएगी। हमें इस बात का संतोष है कि सभी लोगों के सहयोग से, साधु संतों के आशीर्वाद से राजिम कुंभ की महिमा पूरे देश में लगातार बढ़ती जा रही है। मेरा मानना है कि जितने ज्यादा साधु संतों के यहां चरण पड़ेंगे, छत्तीसगढ़ की उतनी ज्यादा तरक्की होगी। उतना ही ज्यादा यहां के लोगों में सदाचरण आएगा। मैं साधु संतों से उनके आशीर्वाद की ताकत मांगता हूं ताकि हम अपने प्रदेश को खुशहाल बना पाएं। यहां जो धर्म की गंगा बह रही है वह सारे देश तक पहुंचे। हमने इस मेले को कानूनी रूप दिया है ताकि यह अनवरत चलता रहे।
(राजिम कुम्भ २०१० में संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का संबोधन)
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