Saturday, February 13, 2010

मेला मतलब घर में मेहमानों का आना

राजिम मेले के बगैर राजिम वासियों का जीवन अधूरा है। सबके पास मेले की सैकड़ों हजारों यादें हैं। मेले का मतलब होता था दूर दूर से मेहमानों का आना और घर में ठहरना। सबके लिए खाने पीेने का इंतजाम रहता था। और यह काम खुशी व उत्साह से किया जाता था। तब टेलीफोन का अधिक चलन नहीं था। लोगों की मुलाकात अक्सर ऐसे मेलों में होती थी। तब टूरिंग टाकीजें हुआ करती थीं। रात भर में कई कई शो हो जाते थे। हमारे जानकार दोस्त यार बताते हैं कि फिल्म दिखाने वाले रील काट काट कर फिल्म को छोटा कर देते थे। तब लोग मेलों में बैलगाडिय़ों से आते थे। आने में भी कई दिन लग जाते थे और मेले में कुछ दिन रुक कर लोग लौटते थे। तब मनोरंजन के अधिक साधन भी नहीं थे इसलिए लोग मेलों का भरपूर मजा उठाकर लौटना चाहते थे। मेले के वे दिन बहुत याद आते हैं।

(राजिम निवासी आशीष से बातचीत पर आधारित)

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