Friday, February 27, 2009
भेडिय़ा तो उधर है साहब..
वैलेंटाइन्स डे को लेकर एक बार फिर समर्थन और विरोध सामने आया है। कुछ लोग हर साल कानून हाथ में लेने का ऐलान करते हैं, तोड़ फोड़ और मारपीट करते हैं। कानून के रखवालों, कानून बनाने वालों का पक्ष प्रभावी तरीके से सामने नहीं आता। डा। रमन सिंह जैसी साफ सुथरी छवि वाले मुख्यमंत्री के राज में कुछ लोग कानून हाथ में लेकर घूमें और कच्ची उम्र के किशोरों, नौजवानों से दुव्र्यवहार करें, यह मुख्यमंत्री और कानून, दोनों के सम्मान के लिए अच्छी बात नहीं। वैलेंटाइन्स डे के विरोधियों का कहना है कि यह पश्चिमी सभ्यता है। प्रेम पूर्वी या पश्चिमी नहीं होता। उसका इजहार भी पूर्वी या पश्चिमी नहीं होता। उसकी कोई भाषा नहीं होती। प्रेमी आंखों में बात कर लेते हैं। इसे कोई रोक नहीं सकता। विरोध करने वालों को किसी से प्रेम हो जाएगा तो वे खुद को रोक नहीं सकेंगे। शायद उन्हें बचपन से नफरत सिखाई गई है। या सिर्फ खुद से प्रेम करना सिखाया गया है। पश्चिम के बारे में हमारे यहां बहुत से लोगों के दिल में गलत धारणा है। गांधी पर सबसे मशहूर फिल्म पश्चिम के आदमी ने बनाई। हमारा पहनावा, हमारे घरों की डिजाइन, हमारी गाडिय़ां, हमारे मोबाइल, सब कुछ तो पश्चिमी है। सिगरेट और शराब भी विदेशी है। क्या विरोध करने वाले धोती पहनकर देसी और बीड़ी पीते हैं? विरोध करने वालों को घटिया सड़कें नहीं दिखतीं। नाले में बदल चुकी नदियां नहीं दिखतीं। कारखानों की वजह से बरबाद होती फसलें नहीं दिखतीं। बच्चों के भोजन में कीड़े नहीं दिखते। जनता के पैसे की जहां-तहां बरबादी नहीं दिखती। उनकी मर्दानगी उन बच्चों के सामने दिखती है जो विरोध नहीं कर सकते। सड़क और चावल के घोटाले करने वालों का विरोध करना इनके बस की बात नहीं। विरोध होता भी है तो बीच में खत्म भी हो जाता है। प्रेम के इजहार के आधुनिक तौर तरीके बदलते समय के हिस्से पुर्जे हैं। हर आदमी की अलग अलग रुचियां होती हैं। चलन के खिलाफ जाने का अपना दुस्साहस होता है। इस हिसाब से वह नया कुछ करता रहता है। नई पीढ़ी ऐसा बहुत कुछ नया अपना रही है। उसे भेड़ बकरी समझकर रोकना ठीक नहीं। उसके आगे सम्मान से अपनी बात रखनी चाहिए। समझाने की यह प्रक्रिया अपने घर से शुरू होनी चाहिए। आप महादेव घाट पर पुन्नी मेले में चल जाइए। गांव के ज्यादातर बच्चे मडोना और माइकल जैक्सन जैसे कपड़ों में मिलेंगे। आज गांव गांव में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुल गए हैंं। लोग शान से अपने बच्चों को उसमें भेजते हैं और उन्हें टाई पहने देखकर गौरवान्वित होते हैं। वैलेंटाइन्स डे के विरोधी इन्हें रोक पाएंगे? वे किस किस को रोकेंगे? जिन लोगों को अपनी संस्कृति की चिंता है उन्हें देखना चाहिए कि अपने प्रदेश में संस्कृति का क्या हाल है? किन लोगों का किस बात के पुरस्कार मिल रहे हैं? जिंदा आदिवासियों के प्रदेश मेंं आदिवासी मूर्ति बनाकर सजाने का सामान हो गया है। संस्कृति तो बस्तर में खत्म हो रही है भाई साहब। आप डंडे लेकर राजधानी में घूम रहे हैं।
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