Thursday, March 5, 2009

माँ को कोई कैसे भूल सकता है?

कल माँ का फ़ोन आया था। उसने कहा- बहुत दिन से बात नही हुई। बिल्कुल भूल गया। माँ को भूला नही हूँ। लगभग रोज याद करता हूँ। लेकिन कई बार यह जताना पड़ता है कि हम याद कर रहे हैं। माँ को कोई कैसे भूल सकता है? माँ हमारे भीतर होती है। हम चाह कर भी उससे दूर नही हो सकते। समय समय पर माँ की याद आती रहती है। कुदरत ने याद भी क्या खूब चीज़ बनाईं है। जब हम एक दूसरे से दूर होते हैं तो याद हमें जोड़ती है। याद एक खूबसूरत चीज़ है। लेकिन कभी कभी सिर्फ़ याद से काम नही चलता। माँ कभी प्यास लगने पर सोचती होगी कि बेटे के हाथ से पानी मिल जाता तो कितना अच्छा होता। पानी तो उसे और कोई भी दे सकता है लेकिन माँ इसी बहाने ख़ुद को यह भरोसा दिलाना चाहती है कि उसका बेटा उसके साथ है। वह दुनिया को बताना चाहती है कि उसका बेटा कितना लायक है। माँ को यह अच्छा नही लगता कि मै ज़मीन पर सोऊ । भले ही इसके लिए डॉक्टर ने कहा हो। माँ को अच्छा नही लगता कि कोई मुझे कुछ करने से रोके। बात बात पर टोके। माँ मेरे मन की शान्ति चाहती है। वह जानती है कि मुझे शान्ति चाहिए। यह इस रिश्ते की एक ख़ास बात है। वैसे यह किसी भी रिश्ते के लिए ज़रूरी है कि आप सामने वाले की ज़रूरत को समझें। ख़ास रिश्ते वे होते हैं जब हम यह सब बताये बगैर समझ जाते हैं। माँ बेटे का रिश्ता ऐसा ही होता है।

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