Thursday, February 12, 2009

राजिम मेला

कोई अपने पड़ोसी का बच्चा चुरा कर उसे अपना साबित कर दे तो पड़ोसी को कैसा लगेगा? राजिम मेले को लेकर मुझे ऐसा ही एहसास होता है।
राजिम की राह में बड़े बड़े पोस्टर लगे हैं जिनमे कुछ लोगों की बड़ी बड़ी तस्वीरें हैं। ये पोस्टर ऐसा कुछ प्रचारित कर रहे हैं कि इन लोगों ने राजिम मेले का आयोजन किया है।
राजिम में मेला बरसों से लग रहा है। शायद सदियों से। उसे उसमे आने वाले लोग मेला बनाते हैं। ये लोग कभी अपने पोस्टर नही लगाते।
राजिम मेला इसलिए सदियों से चल रहा है क्योकि उसे लोगों की आस्था चलाती है। उस ईश्वर पर आस्था जिसका कोई राजनीतिक उद्देश्य नही है। जिसकी ईमानदारी पर किसी को शक नही है।
राजिम की राह में लगे पोस्टर देखकर मुझे ताजमहल और उस पर लिखी साहिर लुधियानवी की नज़्म याद आती है। इसमे कहा गया था कि दुनिया में अनगिनत लोगों ने प्यार किया है लेकिन उनके पास ताजमहल बनने का पैसा नहीं था। शाहजहा ने ताजमहल बनवाकर गरीबो की मोहब्बत का मजाक उडाया है।
राजिम के पोस्टर छत्तीसगढ़ की धर्मप्रेमी जनता का मजाक नही तो क्या है? यह दूसरे के बच्चे को अपना बताने की कोशिश नही तो क्या है? यह उँगली कटा कर शहीद बनना है। यह याद रखना चाहिए कि सरकारी पोस्टर जनता के पैसे से लग रहे है।

क्या यह पर्यटन विकास है?
नही
यह ख़ुद का प्रचार है। यह जनता के पैसे का दुरुपयोग है।
१२ फरवरी 2009

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