Friday, April 16, 2010

हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते

जशपुर के सर्किट हाउस से
सुराज का काफिला जशपुर में दो अलग-अलग जगहों पर ठहरा है । कल सारा दिन तेज धूप में हुई सभाओं के बाद देर रात फुरसत मिली । सुबह देर तक सोने के बाद भी थकान उतर नहीं पाई है । आज यहां से सभाएं लेते हुए मंत्री जी का कारवां अम्बिकापुर तक जायेगा ।
मंत्रियों और उनके साथ चलने वालों के बारे में लोगो की आम धारणा है कि ये लोग भारी ऐशो-आराम के साथ चलते हैं, अच्छा खाते पीते हैं और आराम से सोते हैं । लेकिन बृजमोहन अग्रवाल के साथ चलने का अनुभव इससे एकदम अलग है ।
वे एक प्रभावशाली मंत्री हैं। यह प्रभाव उनके ज्ञान और अनुभव से उपजता है, इसके आगे काम न करने वाले अफसर परास्त हो जाते हैं । उनके साथ पैदल चलना भी कठिन है और उनके सवालों से बच पाना आसान नहीं । वे लगातार सवाल दागते हैं और आपका पूरा रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने आ जाता है । हर सभा में वे लगातार आधे-एक घंटे तक बुलंद आवाज में बोलते हैं । लोगों की फरियादें सुनते हैं । अफसरों से पूछकर उनका तत्काल समाधान करते हैं फिर धान का बोनस, खेती के औजार, नाव-जाल जैसी चीजें  बांटने का लम्बा सिलसिला चलता है । और यह सब 40 के ऊपर  के तापमान पर चलता रहता है । आखिरी सभा कभी रात 12 बजे होती है तो कभी रात दो बजे ।
अगर आप रिपोर्टिंग के लिए साथ चल रहें हैं तो एक दो सभाओं के बाद आपको ऊब होने लगती है और आप  बुरी तरह थक जाते हैं. लेकिन जिसके नेतृत्व में आप चल रहें हैं, वह थकने के लिए तैयार नहीं है । और हाँ , यह कोई बारात नहीं है । इसमें आपका स्वागत नहीं होता। बैठने के लिए कुर्सियां नहीं मिलतीं  और किसी ने पानी के लिए पूछ लिया तो आप इसे सौभाग्य मानियें । खाने की व्यवस्था जरूर होती है लेकिन खाने तक आप कब पहुंचेगें यह तय नहीं होता । इस यात्रा में शामिल लोगों के लिए यह कोई मनोरंजक सफर नहीं है । आपको टोलियां बनाकर हंसी ठ्टठा करने वाले नहीं मिलते । हर कोई बेहद चौकन्ना है कि साहब कब क्या पूछ लेंगे । चार दिनों की यात्रा का अनुभव कहता है कि दूर बैठकर सरकार की कमियां निकालना आसान है, सरकार चलाना आसान नहीं है ।

साहब डांटते हैं, सस्पेण्ड नहीं करते -
मंत्री जी के साथ ऐसी कई यात्राओं में रह चुके लोग अपने अनुभव बांट रहें हैं । इससे उनकी अलग-अलग खूबियों का पता चल रहा है । लोग बताते हैं कि किसी से एक बार मिलने के बाद अगली मुलाकात दो साल बाद भी हो तो इस बात की संभावना रहती है कि वह उसे नाम लेकर बुलाएं । उनकी याददाश्त बहुत तेज है । यह बात तो उन्हें मंच से सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताते हुए देखकर भी पता चलती है । उन्हें लगभग सभी योजनाओं के नाम याद हैं और उनके   प्रावधान भी । उनकी  एक और खूबी का पता चल रहा है कि उनकी  बेहद सख्त मिजाज छवि के भीतर एक धड़कता हुआ दिल भी है और एक दूर तक देखने वाला राजनेता है  जो विनाश में नहीं निर्माण में विश्वास रखता है । लोग बताते है कि काम में कोताही पर वे नाराज होते हैं, जान बूझकर की गयी गलतियों पर डांटते हैं, जो अपनी गलती मानता है उसे सुधरने का मौका देते हैं, सुधरने के रास्ते बताते हैं और अक्सर सस्पेंड  करने की धमकी तो देते हैं, पर सस्पेण्ड नहीं करते । सख्ती वे उन लोगों पर करते हैं जो गलती करके भी अपने को चालाक समझते हैं ।

छत्तीसगढ़ की खूबसूरती का जवाब नहीं -
इस लम्बी यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता और नैसर्गिक सुंदरता के दर्शन हो रहें हैं । कल रायगढ़ से निकलने के बाद काफिला बेहत खूबसूरत जंगल से होकर गुजरा । पतझड़ से सूने हो चुके पेड़ों में लाल हरी कोपले आ रहीं हैं । नीचे गिरे सूखे पत्तों को जलाया गया है और जंगल की धरती काली हो चुकी है । इस काली पृष्ठभूमि में पत्तियों और फूलों के रंग बहुत आकर्षक लगते हैं । तरह-तरह के पक्षी भी देखने में आ रहे हैं ।
मन कर रहा है खूब सारा समय लेकर यहां लौटूं  । जी भर कर तसवीरें उतारूं । लोगो से मिलूं-जुलूं । उनके बारे  में जानूं । फिर अज्ञेय की कविता भी याद आ रही है - अरे यायावर, रहेगा याद ?

4 comments:

पंकज कुमार झा. said...

सरकार की कमियां निकालना आसान है, सरकार चलाना आसान नहीं है????? यही बात मैं पिछले छः साल से आपको समझाना चाह रहा था लोकिन ऐसा लगता है कि आप तय करके बैठे थे कि समझूंगा तो केवल बृजमोहन जी से...हा हा हा हा ....! बढ़िया पोस्ट.....वाह रे अंतरजाल.....! पोस्ट पढ़ कर पता चला कि आप जशपुर तक हो आये.....अच्छा पोस्ट...बहुत बधाई.
पंकज झा.

Sanjeet Tripathi said...

hmm matlab ki jana hoga sath me...
dekhein kab mauka milta hai...

विधुल्लता said...

छत्तीसगढ़ की खूबसूरती का जवाब नहीं -
इस लम्बी यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता और नैसर्गिक सुंदरता के दर्शन हो रहें हैं । कल रायगढ़ से निकलने के बाद काफिला बेहत खूबसूरत जंगल से होकर गुजरा । पतझड़ से सूने हो चुके पेड़ों में लाल हरी कोपले आ रहीं हैं । नीचे गिरे सुखे पत्तों को जलाया गया है और जंगल की धरती काली हो चुकी है । इस काली पृष्ठभूमि में पत्तियों और फूलों के रंग बहुत आकर्षक लगते हैं । तरह-तरह के पक्षी भी देखने में आ रहें हैं ।
मन कर रहा है खूब सारा समय लेकर यहां लौटू । जी भर कर तसवीरें उतारूं । लोगो से मिलूं-जुलूं । उन्के बारे में जानू । फिर अज्ञेय की कविता भी याद आ रही है - अरे यायावर, रहेगा याद...aapki lekhni kaa jwaab nahi

Rahul Singh said...

आपकी कुछ बातों से असहमति के बावजूद आपकी गंभीरता और निष्‍ठा में ऐसा लगाव दिखता है, जो जमीन से जुड़े बिना संभव नहीं होता.