Tuesday, April 13, 2010

ग्राम सुराज अभियान से लौटकर

रायपुर। ग्राम सुराज अभियान गांवों में हलचल मचा रहा है। काम नहीं करने वाले अफसर-कर्मचारी जनता के सामने खड़े किए जा रहे हैं। उन्हें डांटा जा रहा है। जरूरत पडऩे पर हटाया भी जा रहा है। छोटी बड़ी समस्याओं से परेशान लोग खुलकर अपनी बात कह रहे हैं। बालिकाएं और महिलाएं भी पीछे नहीं हैं।

रायपुर जिले में प्रभारी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के नेतृत्व में अभियान चल रहा है। सोमवार को रायपुर से गरियाबंद के बीच उन्होंने निमोरा, पिपरौद, किरवई, तर्रा, रजकट्टा और बारुका में सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के अमल की पड़ताल की। ग्रामीणों से उनकी फरियादें सुनीं। मौके पर उनके समाधान की कोशिशें कीं और ग्राम विकास की बहुत सी मांगों के लिए तत्काल पैसा स्वीकृत किया। एक एक गांव को 25-50 लाख की मंजूरी मिल गई।

छत्तीसगढ़ी में सवाल, अंग्रेजी में जवाब
श्री अग्रवाल की क्लास छत्तीसगढ़ी में चल रही है। स्कूली बच्चों से वे ढेर सारे सवाल करते हैं। निमोरा में एक बच्चे से उन्होंने पूछा- स्कूल में खाना मिलथे? बच्चे ने कहा-यस। सारी सभा ठहाकों से गूंज उठी। श्री अग्रवाल ने बच्चे की तारीफ की।

बच्ची ने की बहस
कुछ बड़ी उम्र की एक बालिका ने बताया कि उसका जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है। इसके लिए पिछले पचास साल का रिकार्ड मांगा जा रहा है। श्री अग्रवाल ने उसे समझाया कि यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। इसके आगे हम कुछ नहीं कर सकते। नाराज बालिका बहस पर उतारू हो गई। उसने कहा- इसका मतलब हम तो आगे पढ़ ही नहीं पाएंगे। श्री अग्रवाल ने यह कह कर उसे शांत किया कि वे उसके लिए कोई रास्ता निकालेंगे।

मंत्री या हेडमास्टर
सरकार खुद चल के तुंहर गांव मं आए है। तुमन ल एती ओती जाए के जरूरत नइं हे। इन शब्दों के साथ वे अपनी बात शुरू करते हैं। फिर स्कूली बच्चों को स्टेज पर बुलवाते हैं। उनसे ढेर सारे सवाल पूछते हैं। बच्चे जवाब देते हैं। यह सिलसिला कुछ इस तरह चलता है-

- स्कूल में खाना मिलथे कि नहीं
0 मिलथे।
- का का मिलथे
0 रोटी....दार...
- अउ भात नइं मिले?
0 मिलथे...
- अउ का का मिलथे?
0 साग..
- अचार पापड़ नइं मिले?
0 नइं
- कुछु मीठा मिलथे कि नहीं?
0 मिलथे
- का मिलथे?
0 खीर
- कौन दिन मिलथे खीर?
0 शनिवार के।
- कोन बनाथे खाना?
0 राधाबाई
- खाना पेट भर मिलथे कि नहीं?
0 मिलथे।
- फिर तैं अतेक दुबली पतली काबर हस?

इसके बाद सभा ठहाकों में डूब जाती है।

फिर स्कूली किताबों के बारे में पड़ताल शुरू होती है।

- तुमन ला पु्स्तक मिलथे कि नहीं?
0 मिलथे।
- फोकट में मिलथे कि पइसा में?
0 फोकट में
- गुरुजी मन पइसा तो नइं मांगें?
0 नइ।
- एखर दाई- ददा मन बताओ भइ पइसा तो नइं देना पडि़स..
सभा में एक और ठहाका लगता है।

मैं नहीं कहों, लइका मन कहत हें
फिर बृजमोहन अग्रवाल का राजनीतिक कौशल दिखने लगता है। वे कहते हैं- देख लो भई। मैं नइं कहत हों, लइका मन कहत हैं कि ओ मन ला पेट भर खाना अउ फोकट में पुस्तक मिलत हे। कमल के सरकार पहिली अइसे सरकार है जे लइका मन ला फोकट में खाना अऊ किताब देवत है। गांव वाला मन संकल्प करो कि एक भी लइका बिना पढ़े लिखे नहीं रहना चाहिए।

थाली धोना अच्छी बात
ग्राम सुराज अभियान के दौरान निमोरा के एक ग्रामीण को एक अच्छी शिक्षा मिली कि खाना खाने के बाद खुद अपनी थाली धोना अच्छी बात है। जिले के प्रभारी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल अभियान के पहले दिन यहां पहुंचे थे। वे बच्चों से मध्यान्ह भोजन की जानकारी ले रहे थे। बच्चों ने उन्हें बताया कि उन्हें पेट भर भोजन मिल रहा है। श्री अग्रवाल ने गांव वालों से पूछा कि उन्हें इस संबंध में कोई शिकायत तो नहीं। एक ग्रामीण ने कहा कि बच्चों को खाना खाने के बाद थाली खुद धोनी पड़ती है। श्री अग्रवाल ने कहा- यह तो अच्छी बात है। यह हमारी संस्कृति है। मैं खुद भी खाना खाने के बाद अपनी प्लेट खुद उठाता हूं। यह संस्कार मुझे अपने बुजुर्गों से मिला है। ग्रामीणों ने इस पर जमकर तालियां बजाईं।

चेतावनी भी, तालियां भी
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और मितानिनें श्री अग्रवाल की क्लास में बुलाई जाती हैं। उनके लिए भी ढेर सारे सवाल हैं। कितने गांव देखती हो, कितनी गर्भवती माताओं को अस्पताल भेजा, उन्हें इसके लिए कितने पैसे मिलते हैं। गर्भवती माताओं को खाने में क्या दिया जाता है, बच्चों को क्या देते हैं। डिपो में दवाएं हैं कि नहीं। गांव में किसी को लू लगी क्या? गरमी में देने के लिए आपके पास ओआरएस है कि नहीं। यह देखना सुखद है कि मंत्री को हर सवाल का तुरंत और सकारात्मक जवाब मिलता है। आमतौर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायतें नहीं मिलतीं। उनके लिए तालियां बजवाई जाती हैं।

2 comments:

somendra said...

अच्छा लगा पढ़ कर, ग्राम स्वराज्य को ग्राम सुराज्य में बदलते देखना सुखकर है. यदि जन सामान्य अपनी समस्याओं के हल के प्रति जागरूक हो जाये एवं मिल कर कार्य करे तो शासकीय कर्मचारी भी आगे बढ़कर अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करते हैं.

पंकज कुमार झा. said...

बने बने लिखीस हे....इसने अपना कलम मा धार ला के महतारी छत्तीसगढ़ के सेबा करबो.....!
पंकज झा.