हम लोग आज का काम खत्म करके सांस ले रहे थे। अचानक एक जूनियर सहयोगी ने कहा- एक बड़ी खबर है। अमुक आदमी की बेटी को एक लड़का भगा के ले गया।
व्यक्तिगत रूप से मुझे ऐसी भाषा पसंद नहीं है। ऐसी घटनाओं के बारे में चटखारे लेकर बात करना भी मुझे अच्छा नहीं लगता। क्योंकि बहनें और बेटियां सबकी होती हैं। मेरी भी हैं।
अखबार को चटपटा मसाला चाहिए होता है। ऐसी खबरें मिलने पर मैं अक्सर दुविधा में पड़ जाता हूं। उत्साही रिपोर्टरों से मैं पूछना चाहता हूं- तुम्हारी बहन होती तो खबर कैसी बनाते? खबर बनाते भी कि नहीं?
मगर मेरे मन पर एक और चोट होनी थी। जूनियर ने आगे कहा- रातो रात करोड़पति बन गया साला। उसकी आवाज में अफसोस था। वह अफसोस जो पड़ोसी की लाटरी लग जाने पर होता है।
मेरी चेतना झनझना गई। ये किस तरह की सोच है। ये कैसा रोजगार है। क्या इस नौजवान में जरा भी आत्मगौरव नहीं है? आत्मनिर्भर होने का भाव नहीं है? अपनी मेहनत की कमाई खाने का कोई आग्रह नहीं है?
मैंने उस लड़के से यह सब नहीं कहा। शायद वह मन ही मन कहता- आपने शायद यह मेहनत करके नहीं देखी। वरना फल खा रहे होते।
बहुत पहले वाली आसी का एक शेर सुना था-
किसी आवाज पर ठहरे तो हो जाओगे पत्थर के।कि इस जंगल में चारो ओर जादूगरनियां होंगी।।
मैं अपने सहयोगी से कहना चाहता था कि सट्टे और लाटरी की यह मानसिकता बदलो। मेहनत से कमाओ। सिर उठा के जियो।
फिर मुझे वह लतीफा याद आया- किसी इंस्पेक्टर ने हवलदार से कहा- इतनी मत पिया करो, अपना काम सुधारो तो एक दिन मेरी तरह इंस्पेक्टर बन जाओगे। हवलदार ने कहा- इंस्पेक्टर कौन बनना चाहता है। एक पैग पीने के बाद मैं खुद को आईजी से कम नहीं समझता।
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2 comments:
किसी इंस्पेक्टर ने हवलदार से कहा- इतनी मत पिया करो, अपना काम सुधारो तो एक दिन मेरी तरह इंस्पेक्टर बन जाओगे। हवलदार ने कहा- इंस्पेक्टर कौन बनना चाहता है। एक पैग पीने के बाद मैं खुद को आईजी से कम नहीं समझता।
-बहुत सटीक!
आप भी सुधरेंगे नहीं...ऐसा लगता है....अरे सर..नज़र-नज़र का फेर है....आज की तारीख में आप ही को सुधारने में समूचा हुजूम उम्र पड़ेगा सर....उल्टी खोपडी से देखिये ..तब समझ आयेगी आज की दुनिया.
पंकज झा.
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