Tuesday, June 1, 2010

मैं भी लंगोटी पहन लूं?

छत्तीसगढ़ भाजपा के नए बनाए गए अध्यक्ष रामसेवक पैकरा हांगकांग गए हैं। उनके साथ संगठन महामंत्री रामप्रताप भी गए हैं। टीवी पर समाचार आया कि कुछ दूसरे नेता श्रीलंका जा रहे हैं। मुझे लगता है कि ये दोनों प्रवास छत्तीसगढ़ की प्राथमिकता में नहीं हैं।
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मेरे एक मित्र ने कुछ भाजपा नेताओं से बात की। इनमें से एक नाराज हो गए। उनका कहना था कि मीडिया को किसी के व्यक्तिगत जीवन में नहीं झांकना चाहिए। हर किसी को यात्रा पर जाने का हक है।
मेरा खयाल है कि सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों की कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। अगर वह राजनेता है तो समाज को दिशा देता है। डरे हुए समाज को संबल देता है। दुखी समाज को सर टिकाने के लिए अपना कंधा देता है।
मुझे लग रहा है कि भाजपा अध्यक्ष मौज कर रहे हैं। राजनीतिक रिपोर्टिंग करने वाले मेरे मित्रों की राय है कि रामसेवक पैकरा एक डमी अध्यक्ष हैं। पर्दे के पीछे से कुछ प्रभावी नेता फैसले लेंगे। अध्यक्ष का काम होगा उन पर मुहर लगाना। नए अध्यक्ष के लिए ऐसा आदमी ढंूढा गया जिसके विद्रोह करने की संभावना कम से कम हो। इस मापदंड पर पैकरा सबसे काबिल पाए गए। उन्हें और काबिल बना कर रख देने के लिए हांगकांग ले जाया गया है।
अपनी अल्पज्ञता के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं लेकिन मुझे इन बातों पर विश्वास होता है। मुझे वास्तव में कोई वजह नजर नहीं आती जिसके लिए नए भाजपा अध्यक्ष को हांगकांग जाना चाहिए।
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भाजपा की संवेदनहीनता के कुछ उदाहरण मैं देख चुका हूं। जिस दिन बस्तर में नक्सली विस्फोट से सीआरपीएफ के 76 जवान मारे गए थे, भाजपा अपना स्थापना दिवस मना रही थी। एकात्म परिसर में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने के बाद पार्टी के नेता पार्टी की राजनीतिक उपलब्धियों के बारे में पहले से सोचा गया भाषण दे रहे थे और कार्यकर्ता तालियां बजा रहे थे।
पार्टी के कुछ नेताओं से व्यक्तिगत बातचीत में मैं पाता हूं कि गरीबों और आम जनता के लिए उनके मन में बहुत हिकारत है। वे गरीबों को राशन की दुकान के आगे लाइन लगाए देखना चाहते हैं। उन्हें खुशी होगी अगर सारे वोटर शराब के आदी हो जाएं और मतदान से पहले वाली रात शराब बांटकर उनके वोट खरीद लिए जाएं। ये मेरा कुछ नेताओं के बारे में व्यक्तिगत अनुभव है। और कांग्रेस के कुछ नेताओं को भी मैंने इसी सोच का पाया। यह सत्ता का नशा होता है। आदमी को अपने सिवा कुछ दिखाई नहीं देता। उसकी फिलॉसफी बुश जैसी हो जाती है- या तो आप हमारे साथ हो या सद्दाम के साथ।
राजनीति के बारे में एक और खतरनाक बात का मैं जिक्र करना चाहूंगा। कुछ दिनों पहले मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व छत्तीसगढ़ के मौजूदा मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चला था। इससे यह बात सामने आई थी कि नक्सल इलाकों में नक्सलियों से सांठ गांठ कर चुनाव जीते जाते हैं।
तो राजनीति के इस दौर में किसी को भाजपा अध्यक्ष का हांगकांग जाना बुरा न लगे लेकिन मेरे जैसे कुछ लोगों को बुरा लगता है।
गांधी का फलसफा था-जब तक मेरे देश का एक भी आदमी लंगोटी पहनता है, मुझे उससे ज्यादा कपड़े पहनने का हक नहीं है। अभी के नेताओं का फलसफा है- तुम लंगोटी में रह गए हो तो क्या मैं भी लंगोटी पहन लूं?

1 comment:

मिलकर रहिए said...
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