Wednesday, December 16, 2009
दशहरे की एक याद
आज दशहरा है। अक्सर दशहरे पर कुछ लिखने का संयोग बन जाता है। पिछले कई दशहरों पर मैंने महसूस किया कि ठंड इसी दिन से शुरू होती है। लेकिन इस बार पिछले कई दिनों से ठंड महसूस हो रही है। दिन में तो इसका पता नहीं चलता लेकिन देर रात और सुबह सुबह अच्छी ठंडकर रहती है। कल मैंने पांच छह जगह भंडारों का आनंद लिया। मेरे लिए यह एक आनंद है। मैं इसे एक लोकतांत्रिक आयोजन पाता हूं। हालांकि यह आयोजकों पर निर्भर करता है कि वे कितने लोकतांत्रिक हैं। वे भक्तों के लिए भोजन का प्रबंध करने वाले सेवक हैं कि गरीबों को खैरात बांटने वाले सामंत। अलग अलग जगहों पर मैंने अलग अलग तेवर वाले आयोजक देखे। सबसे विनम्र नए बस स्टैंड के भंडारे वाले थे। वे सब गरीब थे और लोगों को बुला बुलाकर माता का प्रसाद बांट रहे थे। यह आलू और गोभी वाला पुलाव था और बहुत स्वादिष्टï था। मैंने पिछले आठ नौ दिनों तक भूख से निबटने के पूरे इंतजाम के साथ उपवास किया था। ऐसे उपवास में बड़ा मजा आता है। जरा भी चर्बी कम नहीं होती। जरा भी कष्टï नहीं होता। भूख का तो मानो अहसास तक नहीं होता। जब भी भूख लगे, आपके पास साबूदाने की खिचड़ी, आलू की टिकिया, केले, सेब, अंगूर, दूध सब हाजिर हैं। बाजार में हल्दीराम का फलाहारी चिवड़ा मिलता है और बनाना चिप्स भी। पाक कला में निपुण, खाने पीने की शौकीन, संपन्न भक्तन महिलाओं के साथ अगर आप उपवास करेंगे तो फायदे में रहेंगे। बहरहाल, इस उपवास में सिर्फ इतना कष्टï था कि अनाज एक टाइम खाना है और लहसुन प्याज नहीं खाना है। मैं सच्चा उपवास करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। मगर एक टाइम खाने का नियम रखकर भी महसूस किया कि उपवास एक अनुशासन सिखाता है, संयम सिखाता है। दुनिया में खाने पीने की ढेर सारी चीजें हैं। लेकिन कब कितना खाना है, यह इंसान को अपने नियंत्रण में रखना चाहिए। चीजें तो इतनी हैं कि वह खाता रहे। लेकिन नुकसान उसे ही उठाना है। यह सिर्फ खाने के मामले में नहीं, हर मामले में होता है।मैंने भंडारों में घूम घूम कर तय किया है कि कभी अनुकूल वातावरण रहा तो अपने मित्रों के साथ मिलकर इसका आयोजन करूंगा। बचपन में हम सब घरों से अनाज और दूसरी चीजें इक_ïा करके पिकनिक करते थे। यह भी इसी तरह की चीज है। मिलबांट कर खाने का सुख इन भंडारों से मिलता है। भंडारे हमें याचक भाव सिखाते हैं। याचक भाव का यह मतलब नहीं कि हम पूरी जिंदगी मांगकर बैठे बैठे खाएं। याचक भाव का मतलब है कि हममें हेकड़ी न रहे। यह हेकड़ी कभी कभी इंसान को सूखी लकड़ी की तरह तोड़ देती है।
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