Sunday, May 23, 2010

पुलिसवालों का स्टिंग

हरियाणा में पुलिस के आला अधिकारियों ने खुद पुलिस थानों के स्टिंग आपरेशन करवाए हैं। यह देखने के लिए कि पुलिसवाले जनता से कैसा व्यवहार करते हैं, उनकी एफआईआर लिखते हैं कि नहीं। जनता से अच्छा बर्ताव नहीं करने वालों को निलंबित किया गया है। बर्ताव अच्छा लेकिन एफआईआर न लिखने वालों को चेतावनी दी गई है। और दोनों काम पक्के से करने वालों को इनाम दिया गया है। ऐसा हर जगह करने की जरूरत है।
पुलिस थानों से जनता की आम शिकायत है कि वहां उनसे ढंग से बात नहीं की जाती, उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी जाती, उनसे रिश्वत ली जाती है, पैसे लेकर अपराधियों को बचाया जाता है, बेगुनाहों को सजा दी जाती है। इसे सामने लाने के लिए और कार्रवाई का ठोस आधार बनाने के लिए स्टिंग की जरूरत है। आम पुलिसवालों की तो भाषा तक भ्रष्ट रहती है। इसकी वजहें गिनाई जाती हैं कि अपराधियों से निबटते निबटते उनकी जुबान और व्यवहार ऐसा हो जाता है। फिर काम का तनाव उन्हें चिड़चिड़ा बना देता है। लेकिन यह समस्या तो है। हो सकता है स्टिंग हो तो पुलिस वालों की बहुत सी खामियों के पीछे छिपे कारण सामने आएं, उनकी समस्याएं सामने आएं, उनका भी समाधान हो।
ऐसा और भी विभागों में है। ज्यादातर जगहों पर बैठे हुए लोग रिश्वत के बगैर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं। हर आम आदमी किसी न किसी काम से लंबी और भ्रष्ट सरकारी प्रक्रिया से गुजरता है। यह अनुभव भयावह होता है। रिश्ते नाते, सामाजिकता, इंसानियत जैसी चीजों का यहां कोई काम नहीं। इंसान कैसे दूसरे इंसानों को लूटने खसोटने में लगा रहता है, यह इन दफ्तरों में साफ देखा जा सकता है। कुछ अच्छे लोग भी रहते हैं लेकिन वे दबे दबे रहते हैं।
तो इस स्टिंग की जरूरत समाज के सभी वर्गों के लिए है। राजनीति, मीडिया और धर्मगुरुओं तक, सभी का स्टिंग होना चाहिए। राजनीतिक नेतृत्व समाज की दशा और दिशा के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है क्योंकि उसके हाथ में ताकत होती है और देश को चलाने के नियम कायदे वही बनाता है। मीडिया पर जिम्मेदारी है कि वह इस पर नजर रखे। धर्मगुरुओं का भी लगभग यही काम है। और इन सभी वर्गों से शिकायतें आती रहती हैं कि इनमें से बहुतेरे अपनी जिम्मेदारियां ठीक तरह से नहीं निभा रहे हैं।
ये सब समाज के अंधेरे कोने हैं। इनमें झांकने की आम जनता की हिम्मत नहीं पड़ती। कौन पंगा ले इनसे। जब आडिट का डर नहीं रहता तो मनमानी होती है। यही समाज के ताकतवर तबकों के साथ हो रहा है। परदे के पीछे की कहानी परदे के सामने की कहानी से बहुत अलग होती है। धर्मगुरुओं के प्रवचन में कुछ और होता है आश्रमों में कुछ और। मीडिया की छवि ऐसी है कि उसका काम खबरों के जरिए विज्ञापनदाताओं का हित साधना और काले धंधे में अपना हिस्सा तय करवाना हो गया है। वह जनता को सच नहीं बताता। वह ऐसी सामग्री परोसता है जिसे विज्ञापनदाता परोसना चाहते हैं। वह अपराधियों के इंटरव्यू और सट्टे के नंबर तक छापने से नहीं चूकता।
वैसे स्टिंग आपरेशन एक फौरी जरूरत हो सकती है लेकिन यह एक सभ्य तरीका नहीं है। दफ्तरों में जगह जगह लगे सीसी कैमरे भी बताते हैं कि हम एक सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं। क्या किसी को देखे जाने के डर से ईमानदार होना चाहिए। क्या किसी को स्टिंग के डर से मीठी मीठी बातें करनी चाहिए? शातिर लोग तो कुछ दिनों बाद इसका भी तोड़ निकाल लेंगे। आदर्श स्थिति तो यह है कि लोग ईमानदार होने के फायदे देखकर ईमानदारी बरतें। अच्छे व्यवहार के महत्व को समझकर अच्छा व्यवहार करें।
मसलन छत्तीसगढ़ में पुलिस से कहा गया है कि वह खासतौर पर नक्सल प्रभावित इलाकों में जनता से अच्छा व्यवहार करे। जनता का विश्वास पाए बगैर नक्सलियों से नहीं लड़ा जा सकता। आखिर जनता को भी तो समझ में आना चाहिए कि ये लोग उनसे अच्छे हैं?