Tuesday, April 20, 2010

गाँधी का सपना था सुराज...

रायपुर. देश को स्वराज तो मिल गया, अब सुराज आना चाहिए. यह गाँधी जी का सपना था. डॉ. रमन सिंह की सरकार इसे साकार कर रही है. यह बात लोक निर्माण, स्कूल शिक्षा, पर्यटन और संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने आरंग ब्लोक के ग्राम बना में ग्राम सुराज अभियान के दौरान कही. उन्होंने यहाँ ७५ लाख रूपये के काम स्वीकृत किये और कहा- यही सुराज है. उन्होंने कहा कि मुख्यानंत्री के निर्देश पर सरकार खुद चलकर गाँव गाँव में जा रही है. जनता के सामने उसके काम की समीक्षा हो रही है. ग्रामीणों की ज़रूरतों के बारे में जानकारी ली जा रही है. आगे की योजनायें इसी के आधार पर बनेंगी.
१२ पंचायतों का पटवारीबाना में ग्रामीणों ने शिकायत की कि पटवारी गाँव में नहीं आता. पता चला कि उसके जिम्मे १२ पंचायतों का काम है. नाराज ग्रामीणों ने पटवारी को हटाने की मांग की. श्री अग्रवाल ने कहा कि जितना काम हो रहा है, पटवारी को हटाने पर उतना भी नहीं होगा. उन्होंने तहसीलदार से कहा कि इस विसंगति को शीघ्र दूर किया जाये. सरकार दो पंचायतो के पीछे एक पटवारी रखना चाहती है. अधिक से अधिक चार पंचायते हो सकती है. लेकिन एक के जिम्मे १२ पंचायतें देना गलत है.
स्वास्थ्य कार्यकर्ता रोज आयें. स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने बताया कि उसके जिम्मे बाना, बनरसी और गुमा का काम है. वह ८-१० दिन में यहाँ आता है. श्री अग्रवाल ने उसे रोज आने कहा.
सम्बन्ध ठीक होना चाहिए. आँगनबाड़ी कार्यकर्ता के खिलाफ भी ग्रामीणों की नाराजगी सामने आई. बताया गया कि आँगनबाड़ी से गरम खाना नहीं मिलता. श्री अग्रवाल ने कार्यकर्ता से कहा कि काम अगर हो रहा है तो वह दिखना भी चाहिए. आप गाँव के कुछ प्रमुख लोगों को बीच बीच me आँगनबाड़ी में बुलाइए. उन्हें खाना भी खिला दीजिये. इससे उनकी गलतफहमियां दूर हो जाएँगी.
इसी साल बनी टंकी लीकग्रामीणों ने बताया कि बनरसी में इसी साल बनी टंकी लीक हो रही है. श्री अग्रवाल ने इसे ठीक करने के निर्देश दिए. उन्हें बताया गया कि गलत काम करने वाले ठेकेदार को नोटिस दी गयी है.
७५ लाख की सौगातें. श्री अग्रवाल ने ग्रामीणों की मांग पर बनरसी में स्कूल आहाते के लिए २ लाख, गुमा प्राथमिक शाला में दो कमरों के लिए ६ लाख, बाना में आँगनबाड़ी भवन के लिए 3 लाख, बनरसी में राशन और पंचायत भवन के लिए ५ लाख, बाना में सड़क मुरमीकरण के लिए २ लाख, पचरी तालाब गहरीकरण के लिए ६ लाख, सोनाही डबरी तालाब गहरीकरण के लिए ५ लाख, सड़कों के लिए करीब १७ लाख, इस तरह कुल करीब ७५ लाख के कामो की घोषणा की.

Friday, April 16, 2010

हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते

जशपुर के सर्किट हाउस से
सुराज का काफिला जशपुर में दो अलग-अलग जगहों पर ठहरा है । कल सारा दिन तेज धूप में हुई सभाओं के बाद देर रात फुरसत मिली । सुबह देर तक सोने के बाद भी थकान उतर नहीं पाई है । आज यहां से सभाएं लेते हुए मंत्री जी का कारवां अम्बिकापुर तक जायेगा ।
मंत्रियों और उनके साथ चलने वालों के बारे में लोगो की आम धारणा है कि ये लोग भारी ऐशो-आराम के साथ चलते हैं, अच्छा खाते पीते हैं और आराम से सोते हैं । लेकिन बृजमोहन अग्रवाल के साथ चलने का अनुभव इससे एकदम अलग है ।
वे एक प्रभावशाली मंत्री हैं। यह प्रभाव उनके ज्ञान और अनुभव से उपजता है, इसके आगे काम न करने वाले अफसर परास्त हो जाते हैं । उनके साथ पैदल चलना भी कठिन है और उनके सवालों से बच पाना आसान नहीं । वे लगातार सवाल दागते हैं और आपका पूरा रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने आ जाता है । हर सभा में वे लगातार आधे-एक घंटे तक बुलंद आवाज में बोलते हैं । लोगों की फरियादें सुनते हैं । अफसरों से पूछकर उनका तत्काल समाधान करते हैं फिर धान का बोनस, खेती के औजार, नाव-जाल जैसी चीजें  बांटने का लम्बा सिलसिला चलता है । और यह सब 40 के ऊपर  के तापमान पर चलता रहता है । आखिरी सभा कभी रात 12 बजे होती है तो कभी रात दो बजे ।
अगर आप रिपोर्टिंग के लिए साथ चल रहें हैं तो एक दो सभाओं के बाद आपको ऊब होने लगती है और आप  बुरी तरह थक जाते हैं. लेकिन जिसके नेतृत्व में आप चल रहें हैं, वह थकने के लिए तैयार नहीं है । और हाँ , यह कोई बारात नहीं है । इसमें आपका स्वागत नहीं होता। बैठने के लिए कुर्सियां नहीं मिलतीं  और किसी ने पानी के लिए पूछ लिया तो आप इसे सौभाग्य मानियें । खाने की व्यवस्था जरूर होती है लेकिन खाने तक आप कब पहुंचेगें यह तय नहीं होता । इस यात्रा में शामिल लोगों के लिए यह कोई मनोरंजक सफर नहीं है । आपको टोलियां बनाकर हंसी ठ्टठा करने वाले नहीं मिलते । हर कोई बेहद चौकन्ना है कि साहब कब क्या पूछ लेंगे । चार दिनों की यात्रा का अनुभव कहता है कि दूर बैठकर सरकार की कमियां निकालना आसान है, सरकार चलाना आसान नहीं है ।

साहब डांटते हैं, सस्पेण्ड नहीं करते -
मंत्री जी के साथ ऐसी कई यात्राओं में रह चुके लोग अपने अनुभव बांट रहें हैं । इससे उनकी अलग-अलग खूबियों का पता चल रहा है । लोग बताते हैं कि किसी से एक बार मिलने के बाद अगली मुलाकात दो साल बाद भी हो तो इस बात की संभावना रहती है कि वह उसे नाम लेकर बुलाएं । उनकी याददाश्त बहुत तेज है । यह बात तो उन्हें मंच से सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताते हुए देखकर भी पता चलती है । उन्हें लगभग सभी योजनाओं के नाम याद हैं और उनके   प्रावधान भी । उनकी  एक और खूबी का पता चल रहा है कि उनकी  बेहद सख्त मिजाज छवि के भीतर एक धड़कता हुआ दिल भी है और एक दूर तक देखने वाला राजनेता है  जो विनाश में नहीं निर्माण में विश्वास रखता है । लोग बताते है कि काम में कोताही पर वे नाराज होते हैं, जान बूझकर की गयी गलतियों पर डांटते हैं, जो अपनी गलती मानता है उसे सुधरने का मौका देते हैं, सुधरने के रास्ते बताते हैं और अक्सर सस्पेंड  करने की धमकी तो देते हैं, पर सस्पेण्ड नहीं करते । सख्ती वे उन लोगों पर करते हैं जो गलती करके भी अपने को चालाक समझते हैं ।

छत्तीसगढ़ की खूबसूरती का जवाब नहीं -
इस लम्बी यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता और नैसर्गिक सुंदरता के दर्शन हो रहें हैं । कल रायगढ़ से निकलने के बाद काफिला बेहत खूबसूरत जंगल से होकर गुजरा । पतझड़ से सूने हो चुके पेड़ों में लाल हरी कोपले आ रहीं हैं । नीचे गिरे सूखे पत्तों को जलाया गया है और जंगल की धरती काली हो चुकी है । इस काली पृष्ठभूमि में पत्तियों और फूलों के रंग बहुत आकर्षक लगते हैं । तरह-तरह के पक्षी भी देखने में आ रहे हैं ।
मन कर रहा है खूब सारा समय लेकर यहां लौटूं  । जी भर कर तसवीरें उतारूं । लोगो से मिलूं-जुलूं । उनके बारे  में जानूं । फिर अज्ञेय की कविता भी याद आ रही है - अरे यायावर, रहेगा याद ?

Tuesday, April 13, 2010

ग्राम सुराज अभियान से लौटकर

रायपुर। ग्राम सुराज अभियान गांवों में हलचल मचा रहा है। काम नहीं करने वाले अफसर-कर्मचारी जनता के सामने खड़े किए जा रहे हैं। उन्हें डांटा जा रहा है। जरूरत पडऩे पर हटाया भी जा रहा है। छोटी बड़ी समस्याओं से परेशान लोग खुलकर अपनी बात कह रहे हैं। बालिकाएं और महिलाएं भी पीछे नहीं हैं।

रायपुर जिले में प्रभारी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के नेतृत्व में अभियान चल रहा है। सोमवार को रायपुर से गरियाबंद के बीच उन्होंने निमोरा, पिपरौद, किरवई, तर्रा, रजकट्टा और बारुका में सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के अमल की पड़ताल की। ग्रामीणों से उनकी फरियादें सुनीं। मौके पर उनके समाधान की कोशिशें कीं और ग्राम विकास की बहुत सी मांगों के लिए तत्काल पैसा स्वीकृत किया। एक एक गांव को 25-50 लाख की मंजूरी मिल गई।

छत्तीसगढ़ी में सवाल, अंग्रेजी में जवाब
श्री अग्रवाल की क्लास छत्तीसगढ़ी में चल रही है। स्कूली बच्चों से वे ढेर सारे सवाल करते हैं। निमोरा में एक बच्चे से उन्होंने पूछा- स्कूल में खाना मिलथे? बच्चे ने कहा-यस। सारी सभा ठहाकों से गूंज उठी। श्री अग्रवाल ने बच्चे की तारीफ की।

बच्ची ने की बहस
कुछ बड़ी उम्र की एक बालिका ने बताया कि उसका जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है। इसके लिए पिछले पचास साल का रिकार्ड मांगा जा रहा है। श्री अग्रवाल ने उसे समझाया कि यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। इसके आगे हम कुछ नहीं कर सकते। नाराज बालिका बहस पर उतारू हो गई। उसने कहा- इसका मतलब हम तो आगे पढ़ ही नहीं पाएंगे। श्री अग्रवाल ने यह कह कर उसे शांत किया कि वे उसके लिए कोई रास्ता निकालेंगे।

मंत्री या हेडमास्टर
सरकार खुद चल के तुंहर गांव मं आए है। तुमन ल एती ओती जाए के जरूरत नइं हे। इन शब्दों के साथ वे अपनी बात शुरू करते हैं। फिर स्कूली बच्चों को स्टेज पर बुलवाते हैं। उनसे ढेर सारे सवाल पूछते हैं। बच्चे जवाब देते हैं। यह सिलसिला कुछ इस तरह चलता है-

- स्कूल में खाना मिलथे कि नहीं
0 मिलथे।
- का का मिलथे
0 रोटी....दार...
- अउ भात नइं मिले?
0 मिलथे...
- अउ का का मिलथे?
0 साग..
- अचार पापड़ नइं मिले?
0 नइं
- कुछु मीठा मिलथे कि नहीं?
0 मिलथे
- का मिलथे?
0 खीर
- कौन दिन मिलथे खीर?
0 शनिवार के।
- कोन बनाथे खाना?
0 राधाबाई
- खाना पेट भर मिलथे कि नहीं?
0 मिलथे।
- फिर तैं अतेक दुबली पतली काबर हस?

इसके बाद सभा ठहाकों में डूब जाती है।

फिर स्कूली किताबों के बारे में पड़ताल शुरू होती है।

- तुमन ला पु्स्तक मिलथे कि नहीं?
0 मिलथे।
- फोकट में मिलथे कि पइसा में?
0 फोकट में
- गुरुजी मन पइसा तो नइं मांगें?
0 नइ।
- एखर दाई- ददा मन बताओ भइ पइसा तो नइं देना पडि़स..
सभा में एक और ठहाका लगता है।

मैं नहीं कहों, लइका मन कहत हें
फिर बृजमोहन अग्रवाल का राजनीतिक कौशल दिखने लगता है। वे कहते हैं- देख लो भई। मैं नइं कहत हों, लइका मन कहत हैं कि ओ मन ला पेट भर खाना अउ फोकट में पुस्तक मिलत हे। कमल के सरकार पहिली अइसे सरकार है जे लइका मन ला फोकट में खाना अऊ किताब देवत है। गांव वाला मन संकल्प करो कि एक भी लइका बिना पढ़े लिखे नहीं रहना चाहिए।

थाली धोना अच्छी बात
ग्राम सुराज अभियान के दौरान निमोरा के एक ग्रामीण को एक अच्छी शिक्षा मिली कि खाना खाने के बाद खुद अपनी थाली धोना अच्छी बात है। जिले के प्रभारी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल अभियान के पहले दिन यहां पहुंचे थे। वे बच्चों से मध्यान्ह भोजन की जानकारी ले रहे थे। बच्चों ने उन्हें बताया कि उन्हें पेट भर भोजन मिल रहा है। श्री अग्रवाल ने गांव वालों से पूछा कि उन्हें इस संबंध में कोई शिकायत तो नहीं। एक ग्रामीण ने कहा कि बच्चों को खाना खाने के बाद थाली खुद धोनी पड़ती है। श्री अग्रवाल ने कहा- यह तो अच्छी बात है। यह हमारी संस्कृति है। मैं खुद भी खाना खाने के बाद अपनी प्लेट खुद उठाता हूं। यह संस्कार मुझे अपने बुजुर्गों से मिला है। ग्रामीणों ने इस पर जमकर तालियां बजाईं।

चेतावनी भी, तालियां भी
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और मितानिनें श्री अग्रवाल की क्लास में बुलाई जाती हैं। उनके लिए भी ढेर सारे सवाल हैं। कितने गांव देखती हो, कितनी गर्भवती माताओं को अस्पताल भेजा, उन्हें इसके लिए कितने पैसे मिलते हैं। गर्भवती माताओं को खाने में क्या दिया जाता है, बच्चों को क्या देते हैं। डिपो में दवाएं हैं कि नहीं। गांव में किसी को लू लगी क्या? गरमी में देने के लिए आपके पास ओआरएस है कि नहीं। यह देखना सुखद है कि मंत्री को हर सवाल का तुरंत और सकारात्मक जवाब मिलता है। आमतौर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायतें नहीं मिलतीं। उनके लिए तालियां बजवाई जाती हैं।

Friday, April 9, 2010

कुछ और मौतें, कुछ और मोमबत्तियां

गृहमंत्री पी। चिदंबरम ने काम संभालने के बाद नक्सल मामले में कहा था कि हम इसकी गंभीरता का सही अनुमान नहीं लगा पाए। तब मेरे एक लेखक मित्र ने कहा था कि यह बहुत अच्छा बयान है। आगे उनसे समाधान की कुछ उम्मीद की जा सकती है। अब दंतेवाड़ा घटना के बाद उन्होंने कहा कि चिदंबरम की गंभीरता दिख नहीं रही। राजा का अच्छा होना काफी नहीं। उसे अच्छा दिखना भी चाहिए। चिदंबरम हम छत्तीसगढ़ में बैठे लोगों से बहुत दूर हैं। हम यहां बैठकर यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वे कितने संवेदनशील, कितने जानकार और कितने गंभीर हैं। लेकिन मेरे खयाल से छत्तीसगढ़ में बैठे हम लोगों को सोचना चाहिए कि हम खुद कितने गंभीर हैं। सच तो यह है कि हमें किसी की मौत पर ओह कहने का अभ्यास हो गया है। और खाली समय में हम बहस कर लेते हैं। वरना बस्तर से ढाई तीन सौ किलोमीटर दूर रायपुर में ज्यादातर लोगों को दंतेवाड़ा की घटना से कोई फर्क नहीं पड़ा है। रायपुर बंद और मोमबत्ती जलाने जैसे प्रतीकात्मक काम जरूर किए जा रहे हैं लेकिन वे सिर्फ प्रतीकात्मक हैं। मेरा यह नितांत निजी आब्जरवेशन है कि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा है। जिस रोज घटना हुई वह सत्तारूढ़ भाजपा का स्थापना दिवस था। पार्टी के प्रदेश कार्यालय में एक कार्यक्रम का आयोजन था। नक्सली वारदात में बड़ी संख्या में जवानों के मारे जाने की खबर आने के बाद पता नहीं किस समझदार नेता के कहने पर इसे श्रद्धांजलि सभा में बदल दिया गया। इसमें मैंने पार्टी के एक जिम्मेदार पदाधिकारी का भाषण खुद सुना और एक मंत्री का भाषण अखबार में पढ़ा। पदाधिकारी ने शुरूआत की दो चार लाइनें नक्सली घटना के बारे में कहीं फिर अपनी लाइन पर आ गए। उन्होंने बताया कि भाजपा ने कहां से शुरुआत करके यहां तक का सफर तय किया है। कार्यकर्ताओं ने तालियां बजाईं। 83 लोगों की मौत भी उन्हें भाजपा की कामयाबी पर ताली बजाने से रोक नहीं सकी। किसी को यह नहीं सूझा कि यह समय तालियां बजाने का नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी पूरे जोश से भाषण दे रहे थे। नक्सल मामलों पर पार्टी की गंभीरता दिख रही थी। दंतेवाड़ा की घटना के बाद लगातार प्रतिक्रियाएं देखने सुनने में आ रही हैं। यह बहुत दुखद है कि बहुत से जिम्मेदार लोग घिसी पिटी बातें कहकर अपने संवेदनहीन होने का सबूत दे रहे हैं। नक्सली कायर हैं, हम उन्हें कामयाब नहीं होने देंगे, ऐसे बयान बार बार इस्तेमाल होकर अपना प्रभाव खो चुके हैं । इनसे अब बयान देने वालों की जड़ता प्रकट होती है। सुनने वालों को इससे चिढ़ हो चली है। अगर नक्सली कायर हैं तो यह बात कहने का यह उचित समय नहीं है। यह तो नक्सलियों का दुस्साहस है कि उन्होंने इतनी सक्षम फोर्स पर हमला कर दिया और इतना नुकसान पहुंचा दिया। यह तो दुश्मन का रणनीतिक कौशल है कि उसने जो चाहा कर डाला। नक्सली कायर हैं या नक्सली क्रूर हैं- इन बयानों का मतलब मुझे समझ में नहीं आया। आप उन लोगों के बारे में सोचिए जो नक्सली प्रभाव वाले इलाकों में रहते हैं। जिन्हें दोनों तरफ की बंदूकों के साए में जीना पड़ रहा है। क्या आप यह कहकर उनको राहत दे सकते हैं कि नक्सली कायर या क्रूर हैं? या शहीद जवानों के परिवारों को इससे सांत्वना मिल सकती है? नक्सली तो जो हैं सो हैं, आप बताओ कि आप क्या हो? पिछले दो दिनों में नक्सलियों को खत्म करने के बारे में कई अनौपचारिक बहसों में मैं शामिल हो चुका हूं। भाजपा से जुड़े एक व्यक्ति से मेरी मुलाकात हुई जिसने घटना स्थल के पास कभी शिक्षक के रूप में काम किया था। उसने मेरे एक सवाल के जवाब में बताया कि नक्सलियों का सूचना तंत्र बहुत मजबूत है। गांव वाले उनसे जुड़े हुए हैं। और यह सिर्फ डर की वजह से नहीं है। नक्सली उनको अपने विचारों से प्रभावित करते हैं और उनको प्रशिक्षित करते हैं। गांव वालों से अच्छे संबंध बनाने का काम तो फोर्स का भी है। और मोटे तौर पर पूरे सरकारी तंत्र का है। इस बारे में आम जनता की राय बहुत अच्छी नहीं है। आप किसी भी पार्टी के आदमी से अनौपचारिक चर्चा में पूछ लीजिए। कोई आदमी यह नहीं कहेगा कि सरकारी तंत्र के कामकाज से जनता खुश है। आखिर सरकारी भ्रष्टाचार की खबरों को जनता नक्सली घटनाओं से अलग करके कैसे देख सकती है? उसकी यह राय बनती है कि सरकारी तंत्र घोटाले करने में व्यस्त है, उसका नक्सलवाद से लडऩे में ध्यान नहीं है। जनता अफसरों नेताओं का विलासितापूर्ण जीवन भी देख रही है। अपनी रोजी रोटी के संघर्ष में जुटे लोगों को आप सरकारी विज्ञापनों से कितना भरमा सकते हैं? आम आदमी ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर चलता है, अपमानजनक परिस्थितियों में नौकरी करता है, रिश्वत के बगैर उसका काम नहीं होता। शहर में रहने वाला पढ़ा लिखा आदमी इस अराजकता से परेशान और नाराज रहता है। फिर जंगल में रहने वाले अनपढ़ लोग कितने परेशान और नाराज होते होंगे इसकी कल्पना की जा सकती है।आप मेधा पाटकर की बात मत मानिए। लेकिन जो मुद्दे वे लोग उठा रहे हैं उनको नजर अंदाज मत करिए। यह आपके और मेधा पाटकर के बीच की लड़ाई नहीं है। मेधा पाटकर को यहां रहना भी नहीं है। जिन्हें रहना है उनके बारे में सोचिए।नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई के एक तो सिद्धांत बदलते रहते हैं। फिर खबरें बताती हैं कि अलग अलग सुरक्षा बलों के बीच समन्वय नहीं है। खबरें यह भी बताती हैं कि नक्सली इलाकों में पोस्टिंग रुकवाने के लिए अफसर लाखों खर्च करने के लिए तैयार हैं। इन विसंगतियों को क्या नक्सली आकर ठीक करेंगे? पिछले दो दिनों में कई लोगों ने कहा कि पुलिस को जगदलपुर या दंतेवाड़ा में मुख्यालय बना लेना चाहिए। बारीकी से मॉनिटरिंग होनी चाहिए। सरकार के पास काम करने की बहुत ताकत होती है। ईमानदारी से काम होगा तो जनता को कोई बात समझ में आएगी। लेकिन ज्यादातर लोगों की राय है कि यह भेडि़ए से यह कहने जैसा है कि वह घास खाकर गुजारा कर ले।