Wednesday, June 10, 2009

सैर के वास्ते थोडी सी फजा और सही

आज आर एस एस के एक कार्यक्रम में जाना हुआ। वक्ता प्रकाश सोलपुरकर ने हिंदू मुस्लिम एकता की बात निकाली और कहा कि पहले हिंदू समाज एक हो जाए।

उन्होंने अपने भाषण में यह बतलाने का प्रयास किया कि इस देश में रहने वाले मुस्लिम भी हिंदू ही हैं। मुझे एक बात खटकी कि मुसलमानों को आप भाई कह रहे हो तो पहले हिंदू समाज एक हो जाए कहने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि हिंदू समाज मुस्लिम समाज से अलग है?

मेरे ख्याल से जब आप देश और समाज की चिंता कर रहे हैं तो एकता की सोच में हिंदू मुस्लिम दोनों शामिल होने चाहिए।

श्री सोलापुरकर ने एक जगह कहा-एक समय था जब हमी हम थे।
एक शायर ने कहा है-
चमन में इत्तेफाके रंगो बू से बात बनती है
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, हमी हम हैं तो क्या हम हैं।

अपने इतिहास और परम्परा से हम बहुत कुछ जानते-सीखते है। अपने महान इतिहास से उन्हें नयी पीढी को देने लायक प्यार का कोई सबक नही मिला? नफरत हमें कमज़ोर बनाती है। नफरत पर आधारित अखंड भारत कैसा होगा?

वक्ता ने कहा कि संघ की शाखा में मुसलमानों के आने पर रोक नहीं है। लेकिन भाषण सुनकर मुझे लगा कि बोलने वाले के दिल में उनके लिए जगह नही है।

मिर्जा गालिब का ये शेर मुझे बहुत अच्छा लगता है-

क्यूँ न दोजख को भी जन्नत में मिला लें या रब
सैर के वास्ते थोडी सी फजा और सही।